भारत में विज्ञान और तकनीकी अनुसंधान के क्षेत्र में एक और बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी बीएचयू और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक ऐसा सेंसर विकसित किया है, जो मानव सांसों के संपर्क में आते ही कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों के लिए जिम्मेदार रसायन परफ्लूरो ऑक्टेनोइक एसिड (PFOA) का सटीक पता लगाने में सक्षम है।
इस सेंसर को "इलेक्ट्रोकेमिकल प्रॉपर्टीज ऑफ 2-डी क्वासी क्रिस्टल" नाम दिया गया है। यह सेंसर न केवल कैंसर के निदान में सहायक होगा बल्कि इसे चिकित्सा के अन्य क्षेत्रों में भी उपयोग किया जा सकता है। इस खोज को चिकित्सा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखने वाला माना जा रहा है।
क्या है क्वासी क्रिस्टल और इसका महत्व?
क्वासी क्रिस्टल एक अद्भुत ज्यामितीय संरचना है। इसकी खोज 1982 में इजराइल के वैज्ञानिक डैन शेचमैन ने की थी। शुरुआत में इस संरचना को लेकर दुनिया के वैज्ञानिकों में असहमति थी, लेकिन 2011 में डैन शेचमैन को उनके शोध के लिए रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
क्वासी क्रिस्टल की विशेषता यह है कि यह संरचना अपने आप में अद्वितीय होती है और इसके अणु एक निर्धारित पैटर्न में होते हैं। इसी अनूठी संरचना का उपयोग करके भारतीय वैज्ञानिकों ने यह सेंसर विकसित किया है।
कैसे काम करता है यह सेंसर?
सेंसर की कार्यप्रणाली काफी प्रभावशाली है। इसे सांसों के संपर्क में लाने पर यह मानव शरीर में मौजूद PFOA नामक रसायन की पहचान कर लेता है।
PFOA: यह एक ऐसा रसायन है, जो कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों के लिए जिम्मेदार होता है।
प्रणाली: सेंसर की सतह पर रासायनिक प्रतिक्रियाओं के आधार पर यह रसायन की उपस्थिति और उसकी मात्रा का पता लगाता है।
वैज्ञानिकों की टीम और उनका योगदान
इस सेंसर को विकसित करने में कई वैज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है:
1. प्रोफेसर टी.पी. यादव (इलाहाबाद विश्वविद्यालय): सेंसर की सामग्री का डिज़ाइन और निर्माण।
2. डॉ. चंद्रशेखर तिवारी (आईआईटी खड़गपुर): सेंसर की तकनीकी कार्यप्रणाली पर शोध।
3. प्रो. एन.के. मुखोपाध्याय (आईआईटी बीएचयू): सहायक प्रयोग और विश्लेषण।
4. प्रो. डोगलस (सैपियंस यूनिवर्सिटी, ब्राजील): सैद्धांतिक विश्लेषण।
सेंसर की संरचना और निर्माण प्रक्रिया
यह सेंसर एल्युमिनियम, कोबाल्ट, आयरन, निकेल, और कॉपर जैसे पांच तत्वों को मिलाकर बनाया गया है।
प्रक्रिया: सेंसर की सतह पर सोडियम हाइड्रॉक्साइड का उपयोग कर एल्युमिनियम को हटाया गया, जिससे इसकी प्रतिक्रिया क्षमता कई गुना बढ़ गई।
विशेषता: अपनी अद्वितीय ज्यामितीय संरचना के कारण यह सेंसर प्रभावी रूप से PFOA की उपस्थिति का पता लगा सकता है।
PFOA के संपर्क से जुड़े खतरे
परफ्लूरो ऑक्टेनोइक एसिड (PFOA) एक हानिकारक रसायन है, जो मानव शरीर पर कई गंभीर प्रभाव डाल सकता है:
1. कैंसर: लंबे समय तक PFOA के संपर्क में रहने से किडनी, प्रोस्टेट, और वृषण कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
2.प्रजनन संबंधी समस्याएं: यह गर्भवती महिलाओं में प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है और उच्च रक्तचाप का कारण बन सकता है।
3.प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रभाव: यह संक्रमण से लड़ने की क्षमता को कमजोर कर देता है।
4.हार्मोनल असंतुलन: PFOA शरीर के प्राकृतिक हार्मोन में हस्तक्षेप कर सकता है।
5.लीवर और कोलेस्ट्रॉल: यह लीवर एंजाइम के स्तर को बढ़ा सकता है और कोलेस्ट्रॉल का असंतुलन पैदा कर सकता है।
पूर्व में हुई उपलब्धियां
इससे पहले, वैज्ञानिकों की इसी टीम ने एक ऐसा सेंसर विकसित किया था, जो डोपामिन नामक रसायन की मात्रा का कुछ ही सेकंड में पता लगा सकता था।
डोपामिन सेंसर: यह मानव मस्तिष्क से स्रावित डोपामिन रसायन का विश्लेषण करता है, जो मानसिक उत्तेजना और भावनात्मक स्थिति को प्रभावित करता है।
महत्व: डोपामिन का असामान्य स्राव आत्मघाती प्रवृत्तियों और गंभीर अपराधों का कारण बन सकता है।
यह शोध पहले ही जर्नल ऑफ अमेरिकन केमिकल सोसाइटी में प्रकाशित हो चुका है।
इस खोज का चिकित्सा क्षेत्र में प्रभाव
यह सेंसर कई मायनों में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार ला सकता है:
1. कैंसर की शुरुआती पहचान: सांसों के माध्यम से कैंसरकारी तत्वों का जल्दी पता लगाया जा सकेगा।
2. निवारक उपाय:जोखिम भरे रसायनों के संपर्क में आने वाले लोगों की नियमित निगरानी संभव होगी।
3. सस्ती तकनीक: यह तकनीक सस्ती और अधिक सुलभ हो सकती है।
4. सटीक निदान:यह सेंसर केवल कुछ ही सेकंड में बीमारियों का पता लगा सकता है।
भविष्य की संभावनाएं
इस सेंसर का उपयोग चिकित्सा क्षेत्र के अलावा पर्यावरणीय निगरानी और उद्योगों में भी किया जा सकता है।
पर्यावरण: हवा और पानी में मौजूद हानिकारक रसायनों का विश्लेषण।
उद्योग: औद्योगिक कचरे में रसायनों की मात्रा का पता लगाना।
आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी बीएचयू और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि ने भारत को विज्ञान और तकनीकी अनुसंधान के क्षेत्र में एक नई पहचान दिलाई है। यह सेंसर कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का शीघ्र पता लगाने में मददगार साबित होगा और लाखों जिंदगियां बचाने में सहायक बनेगा।
यह खोज न केवल भारतीय चिकित्सा क्षेत्र में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी स्वास्थ्य सेवाओं में क्रांति ला सकती है। "इलेक्ट्रोकेमिकल प्रॉपर्टीज ऑफ 2-डी क्वासी क्रिस्टल" के माध्यम से होने वाले इस नवाचार ने भारतीय वैज्ञानिकों की प्रतिभा और क्षमता को एक बार फिर से सिद्ध कर दिया है।