बनारस, जिसे आध्यात्मिकता और संस्कृति का शहर कहा जाता है, यहां के निवासी अक्सर अपने अद्भुत कार्यों के लिए जाने जाते हैं। इन्हीं में से एक हैं जयप्रकाश सिंह, जो पिछले 25 वर्षों से बेजुबान पक्षियों और जानवरों की सेवा कर रहे हैं। उनका यह समर्पण न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि इंसान और प्रकृति के बीच अद्वितीय संबंध का प्रतीक भी है।
पक्षी-प्रेम की शुरुआत
साल 2000 में, जब जयप्रकाश सिंह ने पक्षियों और जानवरों के लिए काम करना शुरू किया, तब यह केवल उनकी रुचि थी। धीरे-धीरे यह रुचि एक मिशन बन गई। वे हर सुबह अपने पांडेयपुर स्थित घर की छत पर दो किलो चावल, दूध और रोटी का प्रबंध करते हैं।
उनके छत की चहारदीवार पर हर सुबह सैकड़ों तोते और अन्य पक्षी दाना खाने आते हैं। पक्षियों की चहचहाहट और उनकी उन्मुक्त उड़ान उनके घर को एक प्राकृतिक स्वर्ग का रूप देती है। जयप्रकाश के अनुसार, "जब पक्षी आते हैं और दाना खाते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे जीवन में शांति और संतोष की अनुभूति हो रही हो।"
कोरोनाकाल में बढ़ा पक्षियों का जमावड़ा
साल 2020 में, जब पूरी दुनिया कोरोनाकाल के संकट से जूझ रही थी, तब जयप्रकाश ने महसूस किया कि सड़कों पर पक्षियों को भोजन नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने अपने प्रयास दोगुने कर दिए। उस समय पक्षियों की संख्या काफी बढ़ गई थी। जयप्रकाश बताते हैं, "कोरोनाकाल में पक्षियों के लिए भोजन उपलब्ध कराना मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य बन गया।"
दैनिक रूटीन और सेवा का तरीका
जयप्रकाश सिंह हर सुबह तीन बजे बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए जाते हैं। वहां से लौटने के बाद, वे पक्षियों के लिए भोजन का प्रबंध करते हैं। उनका यह काम दो बार होता है—सुबह 7 बजे और फिर 8 बजे।
छत पर चावल और अन्य अनाज फैलाने के बाद वे तालियां बजाते हैं। यह एक संकेत है, जिसे पक्षी पहचानते हैं। सबसे पहले एक तोता आता है और धीरे-धीरे सैकड़ों पक्षी वहां इकट्ठा हो जाते हैं। छत के अलग-अलग हिस्सों पर बुलबुल, कबूतर, और गिलहरियां भी आती हैं।
पशु-पक्षियों के लिए विशेष व्यवस्था
पक्षियों के साथ-साथ जयप्रकाश सिंह का पशु प्रेम भी उल्लेखनीय है। उनके घर के दरवाजे पर हमेशा कोई न कोई जानवर नजर आता है। वे घायल गायों का इलाज करते हैं और भूखे कुत्तों को खाना खिलाते हैं। उनका यह प्रयास दिखाता है कि इंसान अगर चाहे तो बेजुबान जीवों के लिए बहुत कुछ कर सकता है।
प्रेरणा के स्रोत
जयप्रकाश के इस कार्य की प्रेरणा उनके अनुसार बाबा काशी विश्वनाथ और धूपचंडी के अशोक अग्रवाल से मिली। उनका मानना है कि ईश्वर के प्रति भक्ति और सेवा भावना ही इंसान को जीवन में सच्ची खुशी प्रदान करती है।
वे कहते हैं, "यह काम मेरे लिए पूजा की तरह है। पक्षियों और जानवरों की सेवा करके मुझे आत्मिक शांति मिलती है।"
जीवविज्ञानियों की राय
बीएचयू की वरिष्ठ जीवविज्ञानी प्रोफेसर चंदना हलधर का कहना है कि पक्षियों को भोजन देने के ऐसे मामले अधिकतर राजस्थान में देखने को मिलते हैं। बनारस में जयप्रकाश संभवतः पहले व्यक्ति हैं, जिनके यहां इतनी बड़ी संख्या में पक्षी रोजाना इकट्ठा होते हैं।
उन्होंने बताया, "पक्षी उन जगहों पर अधिक आते हैं, जहां नियमित रूप से भोजन और पानी मिलता है। ऐसे प्रयास से न केवल पक्षियों की संख्या बढ़ती है, बल्कि उनके जीवन को भी बेहतर बनाया जा सकता है।"
प्रोफेसर हलधर ने यह भी कहा कि पक्षी इंसानी संकेतों को समझते हैं। जयप्रकाश का तालियां बजाना और हाथ के इशारे करना इस बात का प्रमाण है कि पक्षी इंसानी भाषा को पहचानने में सक्षम हैं।
समाज के लिए संदेश
जयप्रकाश सिंह का समर्पण केवल एक इंसान के प्रयास की कहानी नहीं है। यह उस इंसानियत का प्रतीक है, जो आज के समय में कहीं खोती जा रही है। उनके अनुसार, "अगर हम सभी अपने जीवन में थोड़ा समय पशु-पक्षियों के लिए निकालें, तो यह धरती और भी सुंदर हो जाएगी।"
उनका यह काम लोगों को यह संदेश देता है कि हमें अपने आस-पास के बेजुबान जीवों के प्रति दया और प्रेम का भाव रखना चाहिए।
भविष्य की योजनाएं
जयप्रकाश सिंह चाहते हैं कि उनके इस प्रयास में और लोग भी शामिल हों। वे कहते हैं, "मैं चाहता हूं कि लोग समझें कि प्रकृति के बिना हमारा जीवन अधूरा है। अगर हम पक्षियों और जानवरों की सेवा करेंगे, तो यह हमारे लिए भी अच्छा होगा।"
वे अपनी छत पर पक्षियों के लिए एक स्थायी भोजन केंद्र बनाने की योजना बना रहे हैं, ताकि जब वे वहां न हों, तब भी पक्षियों को भोजन मिल सके।
जयप्रकाश सिंह का जीवन इस बात का सबूत है कि इंसान अगर ठान ले, तो वह न केवल अपने लिए, बल्कि अन्य जीवों के लिए भी एक बेहतर दुनिया बना सकता है। उनका समर्पण और सेवा भावना हर किसी के लिए प्रेरणादायक है।
बनारस के इस 'पक्षीराजन' की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हम प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर चलें, तो यह दुनिया एक बेहतर और खुशहाल जगह बन सकती है।