डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा अमेरिकी दूतावासों से वायु गुणवत्ता की निगरानी बंद करने का निर्णय पूरी दुनिया में चिंता का विषय बन गया है।
इस फैसले से न केवल भारत की राजधानी दिल्ली, बल्कि दुनियाभर के कई प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण की लाइव ट्रैकिंग प्रभावित हुई है। अमेरिकी सरकार द्वारा बजट कटौती का हवाला देकर इस कार्यक्रम को समाप्त करना, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण पर वैश्विक पारदर्शिता की दिशा में एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
ट्रंप प्रशासन का नया फैसला: ‘गैर-जरूरी खर्च’ या एक बड़ी चूक?
अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में कई नीतिगत बदलाव हुए, जिनमें से कुछ ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उथल-पुथल मचा दी। अब ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत, अमेरिका समेत पूरी दुनिया में अमेरिकी दूतावासों के माध्यम से प्रदूषण पर निगरानी बंद करने का फैसला सामने आया है।
अमेरिकी दूतावासों द्वारा प्रदान किया जाने वाला वायु गुणवत्ता डेटा न केवल अमेरिकी नागरिकों, बल्कि स्थानीय प्रशासन, पर्यावरण विशेषज्ञों और आम जनता के लिए भी अत्यधिक मूल्यवान था। यह डेटा अत्यधिक सटीक माना जाता था और दुनियाभर के नागरिकों को उनके शहर की वायु गुणवत्ता की वास्तविक स्थिति से अवगत कराता था।
अमेरिकी दूतावासों से वायु गुणवत्ता निगरानी क्यों थी महत्वपूर्ण?
भारत जैसे देशों में, जहां वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बना हुआ है, अमेरिकी दूतावासों द्वारा प्रदान किया गया डेटा अत्यधिक विश्वसनीय और आवश्यक था। दिल्ली, जो विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल है, वहां अमेरिकी दूतावास के आंकड़े वायु गुणवत्ता का वास्तविक आकलन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
1. पारदर्शिता और निष्पक्षता: अमेरिकी दूतावासों के डेटा को दुनियाभर में पारदर्शिता का प्रतीक माना जाता था। इस डेटा ने सरकारों और पर्यावरण संगठनों को सही निर्णय लेने में मदद की।
2. वैज्ञानिक अनुसंधान में योगदान: वायु गुणवत्ता का सटीक डेटा वैज्ञानिक अनुसंधान और नीतिगत फैसलों में मदद करता था।
3. चेतावनी प्रणाली के रूप में कार्य: अमेरिकी दूतावासों द्वारा प्रदान किए गए डेटा से आम नागरिकों को प्रदूषण के स्तर की जानकारी मिलती थी, जिससे वे अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठा सकते थे।
बजट कटौती का बहाना या जलवायु संकट को अनदेखा करने की रणनीति?
ट्रंप प्रशासन ने इस फैसले के पीछे बजट कटौती का तर्क दिया है। अमेरिकी विदेश विभाग ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम को जारी रखने के लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध नहीं है, इसलिए इसे बंद करना पड़ा। हालांकि, यह दावा कई विशेषज्ञों के लिए अस्वीकार्य है।
1. जलवायु परिवर्तन पर ट्रंप का नजरिया: यह कोई रहस्य नहीं है कि ट्रंप प्रशासन ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को प्राथमिकता नहीं दी है। अमेरिका को पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकालना, जीवाश्म ईंधन को बढ़ावा देना और पर्यावरण संबंधी नियमों में ढील देना इस बात के संकेत हैं कि यह प्रशासन जलवायु संकट को गंभीरता से नहीं ले रहा।
2. क्या यह राजनीतिक रणनीति है?: कई पर्यावरणविदों का मानना है कि इस फैसले के पीछे केवल बजट कटौती ही नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन संबंधी डेटा की उपलब्धता को सीमित करने की रणनीति भी हो सकती है। यदि अमेरिकी दूतावासें स्वतंत्र रूप से वायु गुणवत्ता डेटा जारी नहीं करेंगी, तो कई सरकारें अपने देशों में प्रदूषण की स्थिति को छुपाने में सक्षम हो सकती हैं।
भारत और अन्य देशों पर प्रभाव
इस फैसले का सबसे बड़ा प्रभाव उन देशों पर पड़ेगा, जहां वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर बनी हुई है। विशेष रूप से भारत, जहां दिल्ली जैसे शहरों में वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है, वहां अमेरिकी दूतावासों का डेटा महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
1. भारत को अपनी प्रणाली मजबूत करनी होगी: अमेरिकी दूतावासों द्वारा डेटा जारी करने से भारत और अन्य देशों की सरकारों को अपनी पारदर्शिता बनाए रखने का दबाव रहता था। अब यह जिम्मेदारी पूरी तरह से भारत सरकार और स्थानीय एजेंसियों पर आ गई है कि वे सही और सटीक आंकड़े जनता तक पहुंचाएं।
2. वैश्विक शोध और चेतावनी प्रणाली कमजोर होगी: दुनियाभर में वायु प्रदूषण से संबंधित शोध कार्यों के लिए अमेरिकी दूतावासों के डेटा का उपयोग किया जाता था। इसके बंद होने से शोधकर्ताओं को सटीक और वास्तविक समय का डेटा मिलने में दिक्कत आ सकती है।
क्या ट्रंप प्रशासन इस फैसले को वापस ले सकता है?
इस फैसले की भारी आलोचना हो रही है। पर्यावरणविद्, वैज्ञानिक और आम नागरिक सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से इस पर विरोध जता रहे हैं। हालांकि, ट्रंप प्रशासन ने अभी तक इस फैसले को वापस लेने के कोई संकेत नहीं दिए हैं।
यदि इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ता है, तो संभव है कि अमेरिका इसे पुनः लागू करने पर विचार कर सकता है। लेकिन ट्रंप प्रशासन की नीतियों को देखते हुए ऐसा होने की संभावना बहुत कम लगती है।
निष्कर्ष: क्या यह वैश्विक पारदर्शिता पर खतरा है?
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अमेरिकी दूतावासों से वायु गुणवत्ता की निगरानी बंद करने का निर्णय केवल एक बजट कटौती का मामला नहीं है, बल्कि यह जलवायु संकट और वैश्विक पारदर्शिता पर एक बड़ा हमला हो सकता है।
इस निर्णय से न केवल भारत बल्कि दुनियाभर के कई देशों पर असर पड़ेगा। अब यह स्थानीय सरकारों, पर्यावरण संगठनों और जनता की जिम्मेदारी होगी कि वे अपने स्तर पर सटीक और विश्वसनीय डेटा की मांग करें।
क्या ट्रंप प्रशासन इस फैसले को वापस लेगा? क्या वैश्विक दबाव इस नीति को बदलने में मदद करेगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन एक बात निश्चित है – यह फैसला पर्यावरण संरक्षण और पारदर्शिता के लिए एक बड़ा झटका है।