महाकुंभ में शुरू हुई कठिन साधनाओं की तैयारियां, वैष्णव परंपरा के साधु करेंगे विशेष तपस्या
प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ 2025 में साधुओं की कठिन तपस्याओं की तैयारियां जोरों पर हैं। इस बार खाक चौक में 350 से अधिक तपस्वी अपनी धूनी साधना के तहत खप्पर तपस्या करेंगे। यह तपस्या सबसे कठिन और अंतिम श्रेणी की मानी जाती है और इसके पूरा होने पर साधु समाज में उनकी वरिष्ठता तय होती है।
खप्पर तपस्या: सबसे कठिन साधना
वैष्णव परंपरा के श्रीसंप्रदाय (रामानंदी संप्रदाय) में धूना तापना सबसे कठिन तपस्या मानी जाती है। यह तपस्या सूर्य उत्तरायण के शुक्ल पक्ष से प्रारंभ होती है और इसे पूरा करने में 18 वर्षों का समय लगता है।
परमात्मा दास, तेरह भाई त्यागी आश्रम के महंत, ने बताया कि यह तपस्या छह चरणों में पूरी होती है, जिनमें प्रत्येक चरण को पूरा करने में तीन साल लगते हैं:
तपस्या चरण | विवरण |
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पंच श्रेणी | साधक पांच स्थानों पर जलती अग्नि के बीच बैठकर तपस्या करता है |
सप्त श्रेणी | सात स्थानों पर अग्नि के बीच तपस्या |
द्वादश श्रेणी | बारह स्थानों पर अग्नि के मध्य बैठना |
चौरासी श्रेणी | 84 स्थानों पर जलती अग्नि के बीच साधना |
कोटि श्रेणी | सैकड़ों स्थानों पर जल रही अग्नि की आंच में तपस्या |
खप्पर श्रेणी | सिर के ऊपर मटके में जलती अग्नि रखकर 6 से 16 घंटे तक साधना |
खप्पर तपस्या की कठिन प्रक्रिया
सिर के ऊपर मिट्टी के मटके में अग्नि प्रज्वलित की जाती है।
साधक को 6 से 16 घंटे तक इसकी आंच में ध्यानमग्न रहना होता है।
यह तपस्या बसंत पंचमी से गंगा दशहरा तक चलती है।
इसे पूरा करने में तीन साल लगते हैं।
इसके बाद ही साधक की 18 वर्षों की तपस्या पूरी मानी जाती है, जिससे वह अखाड़े में वरिष्ठता प्राप्त करता है।
खाक चौक में तैयारियां शुरू
खाक चौक में निर्वाणी, दिगंबर और निर्मोही अखाड़ों के तपस्वी इस कठिन साधना की तैयारियों में जुट गए हैं। लगभग 350 से अधिक साधु खप्पर श्रेणी की तपस्या करेंगे, जबकि अन्य साधु अपने-अपने चरण की तपस्या पूरी करेंगे।
तपस्या से तय होती है साधुओं की वरिष्ठता
- पंच धूना से होती है शुरुआत – महाकुंभ में आने वाले नए साधु पंच श्रेणी से तपस्या प्रारंभ करते हैं।
- खप्पर तपस्या तक पहुंचने में लगते हैं 18 साल – साधु धीरे-धीरे उच्च श्रेणियों की तपस्या करते हुए खप्पर श्रेणी तक पहुंचते हैं।
- वरिष्ठ साधु समाज में उच्च स्थान प्राप्त करते हैं – खप्पर तपस्या पूर्ण करने वाले साधु समाज में सबसे वरिष्ठ माने जाते हैं।
महाकुंभ 2025 में देखने को मिलेगा दुर्लभ दृश्य
महाकुंभ का यह आयोजन उन लोगों के लिए अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव साबित होगा, जो साधुओं की कठिन तपस्याओं को देखना और समझना चाहते हैं। यह तपस्या त्याग, तप और आत्मसंयम का प्रतीक है, जिसमें साधु मानवीय सीमाओं से परे जाकर कठिन साधनाएं करते हैं।
स्थान: खाक चौक, महाकुंभ नगरी, प्रयागराज
समय: बसंत पंचमी से गंगा दशहरा तक
महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालु इस दुर्लभ साधना को देख सकते हैं और आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त कर सकते हैं।
Disclaimer: अमर उजाला से इनपुट