भारत में ‘एक देश-एक चुनाव’ (One Nation, One Election) का मुद्दा लंबे समय से चर्चा का केंद्र बना हुआ है। हाल ही में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने से संबंधित दो विधेयकों को संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) के पास भेजा गया है। यह कदम विधेयकों पर गहन विचार-विमर्श सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उठाया गया है। आइए इन विधेयकों, उनके प्रावधानों और संभावित प्रभावों पर विस्तृत चर्चा करें।
विधेयकों का उद्देश्य और विवरण
दो विधेयकों को ‘एक देश-एक चुनाव’ की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इनमें शामिल हैं:
1. संविधान (129वां संशोधन) विधेयक
- यह विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए आवश्यक प्रक्रिया और ढांचा तैयार करने का प्रस्ताव करता है।
- इसे संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी, जो केवल संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से ही पारित हो सकता है।
2. केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक
- इस विधेयक का उद्देश्य दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर जैसे केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं की अवधि को अन्य राज्यों की विधानसभाओं के समान बनाना है।
- इसे साधारण बहुमत से पारित किया जा सकता है।
विधेयकों पर चर्चा और विवाद
विपक्षी दलों ने इन विधेयकों को संघीय ढांचे पर खतरा बताते हुए आपत्ति जताई है। उनका मानना है कि यह कदम राज्यों की स्वायत्तता को प्रभावित कर सकता है।
विपक्ष की प्रमुख आपत्तियां:
- संघीय ढांचे पर प्रभाव: एक साथ चुनाव कराने से राज्यों की चुनावी स्वायत्तता कम हो सकती है।
- क्षेत्रीय दलों का महत्व: यह कदम क्षेत्रीय दलों के प्रभाव को कम कर सकता है।
- व्यवहारिक चुनौतियां: पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना प्रशासनिक और लॉजिस्टिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सरकार ने इन आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया है। यह समिति अब इन विधेयकों पर विस्तार से चर्चा करेगी और विशेषज्ञों व संगठनों से राय लेकर अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी।
संयुक्त संसदीय समिति का महत्व
संयुक्त संसदीय समितियां विधेयकों के प्रावधानों का गहराई से अध्ययन करने और व्यापक परामर्श सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाती हैं।
पिछले विधेयक जिनकी जांच संयुक्त समिति ने की:
- नागरिकता संशोधन विधेयक (2019)
- वन संरक्षण संशोधन विधेयक (2023)
- दिवालियापन संहिता (2016)
- वित्तीय समाधान और जमा बीमा विधेयक (2017)
- जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) विधेयक (2022)
इन मामलों में समितियों ने सभी पक्षों की राय लेकर संसद को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की थीं।
‘एक देश-एक चुनाव’ का महत्व
‘एक देश-एक चुनाव’ का प्रस्ताव कई लाभों की ओर इशारा करता है।
संभावित फायदे:
- लागत में कमी: एक साथ चुनाव कराने से समय और धन दोनों की बचत हो सकती है।
- प्रशासनिक दक्षता: बार-बार चुनाव कराने से प्रशासनिक कार्यों पर जो प्रभाव पड़ता है, वह कम हो सकता है।
- निरंतर विकास: बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू होने से विकास कार्यों में रुकावट आती है। एक साथ चुनाव से इसे रोका जा सकता है।
संभावित चुनौतियां:
- लॉजिस्टिक जटिलताएं: पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना एक विशाल प्रशासनिक और तकनीकी चुनौती है।
- राजनीतिक विविधता: भारत जैसे देश में, जहां क्षेत्रीय विविधता बहुत अधिक है, एक साथ चुनाव क्षेत्रीय दलों के प्रभाव को कम कर सकता है।
- संविधान संशोधन: इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए जरूरी संवैधानिक संशोधनों पर आम सहमति बनाना आसान नहीं होगा।
निष्कर्ष
‘एक देश-एक चुनाव’ भारतीय लोकतंत्र में एक बड़ा बदलाव हो सकता है। इसके फायदे और चुनौतियां दोनों ही स्पष्ट हैं। विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति को भेजना एक सकारात्मक कदम है, क्योंकि इससे गहन विचार-विमर्श और परामर्श की प्रक्रिया सुनिश्चित होगी। समिति की रिपोर्ट और सिफारिशें इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव को आगे बढ़ाने में दिशा निर्धारित करेंगी।
भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘एक देश-एक चुनाव’ के विचार को लेकर संसद और देश में किस प्रकार की सहमति बनती है।